डीएनए का पूरा नाम डिऑक्सीराइबोज न्यूक्लिक अम्ल (Deoxyribose Nucleic Acid) है। यह आनुवंशिक
पदार्थ है। जो सभी जीवों की कोशिकाओं में पाया जाता है। प्रोकेरियोट में यह
वृताकार (Circular) जबकि यूकेरियोट में यह रैखिक (Linear) होता है।
DNA एक बहुलक (Polymer) है। जो पॉलीन्यूक्लियोटाइड की दो श्रृंखलाओं का बना होता है।
पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाएं न्यूक्लियोटाइड इकाइयों से मिलकर बनी होती है।
प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड की तीन उप इकाइयाँ होती है।
1-पेण्टॉज शर्करा (5कार्बन शर्करा) (Pantose Sugar)-
यह 5C युक्त
कार्बोहायड्रेट है। इसे डिऑक्सीराइबोज शर्करा भी कहते हैं, क्योंकि राइबोज शर्करा के दूसरे कार्बन पर -OH (हाइड्रोक्सिल) की जगह पर केवल -H (हाइड्रोजन) पाया जाता है। इसको β-2′ डिऑक्सीराइबोज शर्करा भी कह सकते है।
2. नाइट्रोजन क्षार (Nitrogen Base) –
ये दो प्रकार के होते है-
A) प्यूरीन क्षार (Purine):-
ये नाइट्रोजन युक्त दो वलय से बनी होती है। जिनमें एक हेक्सा वलय जिसे
पाइरिमिडीन वलय तथा दूसरी वलय पेण्टा वलय होती है। जिसे इमीडीजोल वलय कहते है। ऐडेनीन (A) तथा ग्वानीन (G) प्यूरीन क्षार के अंतर्गत आते है।
B) पाइरिमिडीन क्षार (Pyrimidine): –
इनमें केवल एक वलय हेक्सा वलय (पाइरिमिडीन वलय ) पायी जाती है। इसमें थाइमीन (T), साइटोसीन (C), तथा युरेसिल (U) सम्मिलित है।
पेण्टॉज शर्करा तथा नाइट्रोजन क्षार ग्लाइकोसिडिक बंध (glycosidic bond) द्वारा जुड़कर न्यूक्लियोसाइड का निर्माण करते हैं।
पेण्टॉज शर्करा + नाइट्रोजन क्षार = न्यूक्लियोसाइड
3. फॉस्फेट समूह (PO4 ) (Phosphate Group)-
यह H3PO4 से प्राप्त होता
है। न्यूक्लियोसाइड फॉस्फोरिक अम्ल से फॉस्फोएस्टर बंध से जुड़कर कर न्यूक्लिओटाइड
बनते है।
पेण्टॉज शर्करा + नाइट्रोजन क्षार + फॉस्फेट समूह = न्यूक्लिओटाइड
पॉलीन्यूक्लियोटाइड (Polynucleotide): –
दो न्यूक्लियोटाइड आपस में 3’-5’ फॉस्फोडाईएस्टर बंध
से जुड़कर डाईन्यूक्लियोटाइड का निर्माण करते है, और कई न्यूक्लियोटाइड आपस में फॉस्फोडाईएस्टर बंध द्वारा जुड़कर पॉलीन्यूक्लियोटाइड
का निर्माण करते है। दो पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाओं के प्युरिन तथा पाइरिमिडीन
एक दूसरे से हाइड्रोजन बंध से जुड़कर कुंडलित होकर डीएनए बनाते है।
एडिनिन, थायमिन से दो
हाइड्रोजन बंध के द्वारा तथा ग्वानिन, साईटोसिन से तीन हाइड्रोजन बंध के द्वारा जुड़ा होता है।
DNA की संरचना-
डीएनए अणु त्रिविमीय होता
है। और दो रज्जुक (Strain)) ओं से बना होता है।
जो कि एक दूसरे के चारों ओर कुंडलित होते हैं। आल्टमान ने इनको न्यूक्लिक अम्ल नाम दिया फ्रैंकलिन और
विल्किन्स ने DNA के X किरण विवर्तन के अध्ययन से यह दर्शाया है। कि DNA द्विकुंडिलत होता है। 1953 में जेम्स वाटसन व फैंसिस क्रिक को DNA की संरचना की खोज करने के लिये नोबेल पुरस्कार दिया गया। वाटसन और क्रिक मॉडल के अनुसार-
1. DNA अणु दो कुंडलियों (DOUBLE HELIX ) से निर्मित हैं जिसमें DNA के दो रज्जुक (Strain) होते हैं। दोनों
रज्जुक (Strain) प्रतिसमांतर रूप
में रहते हैं जिसका आशय यह हुआ कि एक रज्जुक (Strain) में न्यूक्लियोटाइड का अनुक्रम 5’ से 3’ की दिशा में और
दूसरे रज्जुक (Strain)) में 3’ से 5’ की दिशा में होता
है। (3’ व 5’ का आशय उन कार्बन परमाणुओं से है। जिससे फॉस्फेट समूह जुड़े रहते हैं।)
2. कुण्डली का आधार
शर्करा फॉस्फेट से निर्मित होता है। और नाइट्रोजन क्षार शर्करा से सहलग्न होते
हैं।
3. दोनों रज्जुकों (Strain) के क्षार हाइड्रोजन बंधों द्वारा जुड़े होते हैं।
4. A व T के बीच दो हाइड्रोजन बंध तथा G व C के बीच तीन
हाइड्रोजन बंध होते हैं। एक DNA कुण्डली में एक
पूरा कुण्डलीय घुमाव 3.4Nm (नैनोमीटर) या 34 Å के लम्बा होता है। इस पूरे घुमाव में 10 क्षार युग्म होते हैं। प्रत्येक क्षार युग्म परस्पर 0.34 nm (3.4Å) दूरी से पृथक्कृत होते हैं। दोहरे कुण्डलित DNA अणु का व्यास 2nm होता है। वाटसन व
क्रिक मॉडल इस बात की भलीभाँति व्याख्या करता है। कि किस प्रकार अणु DNA के दो रज्जुक (Strain), प्रतिकृति (REPLICATION) व अनुलेखन (TRANSCRIPTION) के दौरान पृथक होकर
पुनः कुंडलित हो सकते हैं।
चारगाफ का नियम-
चारगाफ के नियमानुसार क्षार युग्मन अति विशिष्ट होता है। एक एडेनीन (ADENINE) प्यूरीन क्षार सदैव थाइमीन (THYMINE) – पिरिमिडीन क्षार के साथ युग्मित होता है। प्यूरीन क्षार ग्वानीन (GUANINE) – पिरिमिडीन क्षार, साइटोसीन (CYTOSINE) के साथ संयुक्त होता है। क्षार के ये युग्म पूरक क्षार (COMPLEMENTARY BASE) कहलाते हैं।
डीएनए के प्रकार (Type of DNA) –
DNA कई प्रकार के होते है –
A-DNA, B-DNA, C-DNA, D-DNA ,Z-DNA
DNA प्रतिकृति (DNA
Replication)-
डीएनए के द्वारा अपने समान नया डीएनए बनाने की प्रक्रिया को डीएनए प्रतिकृति
कहते है।
कोशिका चक्र की इंटरफेज अवस्था के s-phase में डीएनए का द्विगुणन होता है इस समय कोशिका के गुणसूत्र न्यूक्लियोप्रोटीन
तंतु के रूप में होते हैं डीएनए द्विगुणन केंद्र के अंदर होता है
DNA की प्रतिकृति चरणों
में पूरी होती है –
1. पराकुण्डलन को
खोलना
DNA कुंडली में पाये
जाने वाले पराकुण्डलन (Spuercoiling) को Topoisomerase द्वारा अकुंडलित किया जाता है। Topoisomerase Enzymeमें डीएनए रज्जुक (Strand) काटने (Nuclease) तथा उनको पुनः
जोड़ने (Ligase) की क्षमता होती है।
Topoisomerase दो प्रकार का होता
है।
Topoisomerase-I
Topoisomerase-II – E.coli में इसे DNA gyrase भी कहते है।
2. फॉस्फॉलिरिकरण (Phosphorylation):-
डीएनए के संश्लेषण (synthesis) में काम आने वाले
न्यूक्लिओटाइड में केवल एक ही फॉस्फेट समूह जुडा होने के कारण मोनोफॉस्फेट के रूप
में होता है। डीएनए के सभी चार प्रकार के मोनोफॉस्फेट ATP से 2-2 अणु फॉस्फेट के
लेकर ट्राई फॉस्फेट बनाते है। इसे फॉस्फॉलिरिकरण (Phosphorylation) कहते है। यह प्रक्रिया फोस्फोराइलेज (Phosphorilase) एंजाइम की उपस्थिति में होती है। इससे चार प्रकार के डिऑक्सीन्यूक्लिओटाइड
ट्राईफॉस्फेट (dNTP) बनते है –
डिऑक्सीएडिनोसिन ट्राईफॉस्फेट (dATP)
डिऑक्सीग्वानोसिन ट्राईफॉस्फेट (dGTP)
डिऑक्सीसाईटीडीन ट्राईफॉस्फेट (dCTP)
डिऑक्सीथायमिडीन ट्राईफॉस्फेट (dTTP)
3. आरंभन स्थल (Replication Origin Site):-
DNA प्रतिकृति की
क्रिया डीएनए के कुछ विशिष्ट स्थानों से शुरू होती जिनको आरंभन स्थल, समारम्भन स्थल या द्विगुणन मूल कहते है। एक ही शब्द का हिंदी में अलग-अलग
अनुवाद किया जाता है इसलिए में आपको English शब्दों पर भी ध्यान देने का सुझाव दुगा। प्रोकेरियोट कोशिका में केवल एक ही आरंभन स्थल (Replication Origin
Site) होता है। जो कोशिका झिल्ली से जुड़ा रहता है। इसे Ori-C कहते है। जबकि युकेरियोट में बहुत सारे आरंभन स्थल होते है। जिसके कारण
युकेरियोट में प्रतिकृति कई स्थानों से शुरू होती है।
4. डीएनए कुण्डली का
पृथक्करण (Unwinding of DNA double helix):-
डीएनए के दोनों रज्जुक (Strand) को पृथक करने का
कार्य Helicase Enzyme द्वारा किया जाता
है। रज्जुक को लड़ी, वलयक आदि भी कहा
जाता है।
Helicase आरंभन स्थल से
जुड़कर दोनों रज्जुको के क्षार युग्म के Hydrogen बंध को तोड़कर दोनों रज्जुक (Strand) को अलग कर देता है।
इस एंजाइम को Origin Binding Protein भी कहा जाता है।
जब Helicase दोनों रज्जुको को
अलग करने के बाद दोनों रज्जुको को स्थिरता प्रदान करने तथा फिर से कुंडलित होने से
रोकने के लिए DNA Binding Protein (DBP) अलग हुए दोनों
रज्जुक (Strand) से जुड़ जाती है। इस
प्रोटीन को Single Stranded Binding protein (SSB Protein) या हेलिक्स स्थाई कारक प्रोटीन (Helix Stabilising
Protein) भी कहते है।
डीएनए के दोनों पृथक रज्जुक (Strand) Y आकार की संरचना बनाते है। जिसे प्रतिकृति द्विशाखा (Replication Fork) कहते है।
5. नये डीएनए रज्जुक
का संश्लेषण (Synthesis of New DNA Strand):-
डीएनए रज्जुक (DNA Strand) पर नये रज्जुक (Strand) का निर्माण डीएनए पालीमरेज एंजाइम द्वारा किया जाता है। लेकिन यह बहुलकीकरण (Polymerization) की शुरुआत नहीं कर सकता इसलिए DNA निर्भर RNA Polymerase (DNA dependent RNA Polymerase) के द्वारा 60-70 न्यूक्लिओटाइड
युक्त छोटे पूरक लड़ी (Complementary Chain) का निर्माण किया
जाता है। जिसे RNA Primer कहते है। जिससे
बहुलकीकरण (Polymerization) की शुरुआत होती है।
RNA Primer बनने के बाद DNA Polymerase एंजाइम इसके 3’ सिरे के हाइड्रोक्सिल (-OH) से नये dNTP को जोड़कर 5’-3’ की दिशा में नये
डीएनए का संश्लेषण (synthesis) करते है। याद रखे
की DNA Polymerase एंजाइम केवल 5’-3’ दिशा में ही बहुलकीकरण (Polymerization) करता है।
DNA निर्भर RNA Polymerase को DNA Primase भी कहते है। DNA Primase Helicase के साथ जुड़ा रहता
है। जिसे Primosome कहते है।
6. सतत एवं असतत DNA संश्लेषण (Continuous and Discontinuous DNA Synthesis) :-
DNA Polymerase एंजाइम केवल 5’-3’ दिशा में ही बहुलकीकरण (Polymerization) करता है। इसलिए 3’-5’ रज्जुक (Strand) पर नए सतत रज्जुक (Continuous Strand) का संश्लेषण (synthesis) 5’-3’ दिशा में होता है। जबकि 5’-3’ रज्जुक (Strand) पर छोटे –छोटे RNA Primer का निर्माण होता है। जिससे 3’-5’ दिशा में असतत
रज्जुक (Discontinuous Strand) का संश्लेषण (synthesis) होता है। इस असतत डीएनए रज्जुक (Discontinuous
Strand) को ओकाजाकी खण्ड (Okazaki Fragment) कहते है। ये
ओकाजाकी खण्ड सिर्फ RNA Primer के बने होते है।
7. अग्रगामी एवं पश्चगामी
रज्जुक (Leading and Lagging Strand):-
DNA के सतत रज्जुक (Strand) को अग्रगामी रज्जुक (Leading Strand) कहते। इसमें केवल
एक ही RNA Primer होता। इनका निर्माण
Replication Fork की तरफ होता है।
तथा असतत डीएनए रज्जुक (Discontinuous DNA Strand) को पश्चगामी रज्जुक
(Lagging Strand) कहते है। इसमें कई RNA primers होते है। इनका निर्माण Replication Fork से विपरीत दिशा में होता है। RNA primers को DNA Polymerase-I द्वारा पृथक किया
जाता है। और DNA ligase द्वारा इन खण्ड को
जोड़ दिया जाता है।
8. DNA प्रतिकृति की
समाप्ति (Termination of DNA Replication):-
E.coli में DNA प्रतिकृति प्रक्रिया की समाप्ति में लिए समापक अनुक्रम (Terminating Sequence) पाये जाते है।
जिनको Ter site कहते है। DNA प्रतिकृति की समाप्ति के लिए Tus Protein सहायता करती है।
प्रोकेरियोट तथा युकेरियोट दोनों में DNA प्रतिकृति की द्विदिशात्मक (Bidirectional) होता है।
DNA Polymerase के प्रकार –
प्रोकेरियोट में DNA Polymerase तीन प्रकार का होता
है –
(1) DNA Polymerase-I
इसे DNA Polymerase-A भी कहा जाता है। ये
ओकाझाकी खंडो को हटा कर नये डीएनए के संश्लेषण (synthesis) का काम करता है। ये Proofreading (सम्भावित संशोधन
हेतु DNA अनुक्रम को पढ़ना)
का कार्य करता है। इसे कोर्नबर्ग एंजाइम (Kornberg Enzyme) भी कहते है।
(2) DNA Polymerase-II
इसे DNA Polymerase-B भी कहा जाता है। ये
डीएनए की मरम्मत का कार्य करता है।
(3) DNA Polymerase-III
इसे DNA Polymerase-C भी कहा जाता है। ये
डीएनए रज्जुक (Strand) का दीर्घीकरण (Elongation) करता है। यह भी Proofreading का कार्य करता है।
युकेरियोट में DNA Polymerase पांच प्रकार का
होता है। –
(1) DNA Polymerase-α
ये प्रतिकृति की शुरुआत करता है। इसमें Primase क्षमता होती है।
(2) DNA Polymerase-β
ये डीएनए की मरम्मत का कार्य करता है।
(3) DNA Polymerase-γ
ये mt-DNA की प्रतिकृति बनता
है।
(4) DNA Polymerase-δ
ये डीएनए संश्लेषण (synthesis) में भाग लेता है।
और डीएनए रज्जुक (Strand) का दीर्घीकरण (Elongation) करता है।
(5) DNA Polymerase-ε
ये डीएनए की मरम्मत का कार्य करता है।
डी.एन.ए.–प्रतिरूपण का महत्व-
(1) DNA में द्विगुणन
द्वारा सन्ततियों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी अस्तित्व बना रहता है ।
(2) जीवधारियों का
विशेष-लक्षण DNA का बार-बार जनन
करना होता है जो द्विगुणन द्वारा सम्भव होता है ।
(3) आनुवांशिक लक्षण, जो DNA पर उपस्थित होते
हैं, समान प्रतिरूपों पर
आ जाते हैं और सन्तति कोशिकाओं में इनका एक-एक प्रतिरूप पहुँचता है ।
(4) जनन-कोशिकाओं से
सन्तति-कोशिकाओं में आनुवांशिक संकेत बराबर मात्रा में पहुँचते रहते हैं ।
आनुवंशिक कोड (Genetic Code in Hindi):-
इसकी खोज Nirenberg, Mathai, H.G.
Khurana तथा Robert Hali ने की तथा Genetic code शब्द George Gamow ने दिया।
RNA में उपस्थित
आनुवंशिक सूचनाओं (Genetic Information) का उपयोग करके एक
प्रोटीन का संश्लेषण (Synthesis) करना किसी एक भाषा
को दूसरे भाषा में अनुवाद (Translate) करने की तरह है।
प्रोटीन संश्लेषण के दौरान चार नाइट्रोजन क्षार (Nitrogen Base) का उपयोग करके 20 प्रकार के एमिनो अम्लो के लिए कोड़ तैयार किये जाते है।
आनुवंशिक कोड (Genetic Code) डीएनए और बाद में
ट्रांसक्रिप्शन द्वारा बने mRNA पर नाइट्रोजन क्षार
का विशिष्ट अनुक्रम (Sequence) है, जिनका अनुवाद प्रोटीन के संश्लेषण के लिए एमीनो अम्ल के रूप में किया जाता है।
एक एमिनो अम्ल निर्दिष्ट करने वाले तीन नाइट्रोजन क्षारों के समूह को कोडन, कोड या प्रकुट (Codon) कहा जाता है।
त्रिक प्रकुट या ट्रिपलेट कोड (Triplet Codon):-
mRNA में चार
न्यूक्लियोटाइड अनुक्रम (Sequence) (U, G, A तथा C) का इस्तेमाल तीन नाइट्रोजन क्षार युक्त कोडोन (43 = 64) रूप में किया जाता है। अतः कोडोन त्रिक होते है क्योंकि यदि कोडोन एकल होते तो
केवल चार ही कोड बनते (41=4) जो 20 प्रकार के एमिनो अम्ल का कूटलेखन नहीं कर सकते और यदि ये द्विक होते तो कुल 16 कोड़ बनते (44=16) जो एमिनो अम्ल को
कूटलेखित नहीं कर सकते।
64 कोडो में अर्थ
कोडोन्स (Sense Codons) और गैर अर्थ
कोडोन्स (Non-sense Codons) शामिल हैं। अर्थ
कोडोन्स वे कोडोन होते है, जो एमिनो अम्ल
निर्दिष्ट करते हैं। तथा गैर अर्थ कोडोन्स वे है जो एमिनो अम्ल निर्दिष्ट नहीं
करते हैं।
अर्थ कोडोन्स की संख्या 61 है। जबकि गैर अर्थ
कोडोन्स की संख्या 3 होती है। एक कोडोन
के द्वारा केवल एक ही एमिनो अम्ल को कोड़ किया जाता है। लेकिन एक ही एमिनो अम्ल के
लिए एक से अधिक कोड होते हैं।
अर्द्धविराम विहीन कोड(Commaless Code): –
आनुवंशिक कोड (Genetic Code) के में बीच कोई
विराम चिह्न (Comma or full stop) नहीं होता है। और न
ही उनके मध्य कोई रिक्त स्थान (Gap) होता है। आनुवंशिक
कोड (Genetic Code) लगातार होते है।
जैसे आनुवंशिक कोड (Genetic Code) निम्न प्रकार के
होते है-
5 ‘AUGUCUCUCAUUCCA 3’
आनुवंशिक कोड (Genetic Code) निम्न प्रकार के
नहीं हो सकते क्योंकि इसमें रिक्त स्थान तथा विराम चिह्न है-
5 ‘AUG,UCUC UCAU, UCCA 3’
अन-आच्छादित या गैर-ओवरलैपिंग कोड (Non-overlap Code): –
आनुवंशिक कोड (Genetic Code) क्रमिक रूप से तीन
के समूह में पढ़ा जाता है। ये एक दुसरे को ओवरलैपिंग नहीं करते है।
एक त्रिक (triplet) का कोई भी
नाइट्रोजन क्षार दुसरे त्रिक (triplet) के साथ नहीं पढ़ा जा
सकता।
प्रत्येक त्रिक को 5 ‘→ 3’ दिशा से पढ़ा जाता
है, इसलिए पहला
नाइट्रोजन क्षार 5 ‘ क्षार होता है, उसके बाद मध्यम क्षार होता है उसके के बाद अंतिम क्षार होता है जो 3’ नाइट्रोजन क्षार है।
प्रारंभक कोडोन (Start Codon):-
पॉलिप्प्टाइड श्रृंखला के संश्लेषण के लिए AUG प्रारंभक कोडोन है। इसका मतलब यह है कि mRNA पर AUG से ही अनुवादन (Translation) की प्रक्रिया शुरू होती है। AUG हमेशा यूकेरियोट्स
में फिनाइल-मेथियोनीन तथा बैक्टीरिया में मेथियोनीन को कोड करता है।
समापक कोडोन (Stop Codon):-
अनुवादन की प्रक्रिया के समाप्ति संकेत तीन कोडोन UAG, UAA और UGA द्वारा प्रदान की
जाती है।
ये किसी भी एमिनो अम्ल के लिए कोड नहीं करते है ये गैर अर्थ कोडोन है। इनमें
से कोई भी एक कोडोन mRNA में आने पर
पॉलिप्प्टाइड श्रृंखला के संश्लेषण की प्रक्रिया रुक जाती है।
UAG को Ochre, UAA को Amber और UGA को Opal भी कहा जाता है।
RNA-
RNA का पूरा नाम राईबोज
न्यूक्लिक अम्ल होता (Ribose Nucleic Acid ) है। यह एकल
पॉलीराईबोन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला (Single
Polyribonucleotide Chain) का बना होता है।
इसमें राईबोन्यूक्लियोसाइड (Ribonucleoside) तथा राईबोन्यूक्लियोटाइड (Ribonucleotide) होते है। राईबोन्यूक्लियोटाइड चार प्रकार के होते है –
एडीनिलिक अम्ल Adenylic Acid (AMP)
ग्वानिलिक अम्ल Guanylic Acid (GMP)
साईटीडीलिक अम्ल Cytidylic Acid (CMP)
युरिडीलिक अम्ल Uridylic Acid (UMP)
RNA तीन प्रकार का होता
है –
1. mRNA या संदेशवाहक RNA (Messenger RNA): –
mRNA या संदेशवाहक RNA प्रोटीन संश्लेषण के लिये केन्द्रक (Nucleus) में स्थित DNA से प्रोटीन
संश्लेषण के स्थान तक सूचना प्राप्त करता हैं। mRNA का निर्माण DNA के रज्जु को टेम्पलेट
के रूप में प्रयोग करके किया जाता है। जिसके कारण mRNA में पूरक क्षार (Complimentory Base) होते है। एक कोशिका
में कुल RNA का 3-5% भाग t-RNA होता है।
प्रोकेरियोटिक कोशिकाओं में एक ही mRNA से एक से अधिक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं (Polypeptide Chain)
का निर्माण होता है। इसलिए इन mRNA को पॉलीसिस्ट्रोनिक (Polycistronic) RNA कहते है। जबकि
युकेरियोटिक कोशिका में एक mRNA से केवल एक ही
पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला बनाने के संश्लेषण के लिए सूचनाएँ होती है। जिसे
मोनोसिस्ट्रोनिक (Monocistronic) RNA कहते है।
2. tRNA या ट्रांसफर RNA (Transfer RNA) :- यह सबसे छोटा RNA है। जिसमें 75-95 राईबोन्यूक्लियोटाइड
पाये जाते है। यह प्रोटीन के संश्लेषण के समय राइबोसोम के A-स्थल में अमीनो अम्ल का स्थानांतरण करता है। प्रत्येक 20 amino acids के लिए विशिष्ट tRNA होते है। प्रत्येक tRNA एक ही अमीनो अम्ल
के लिये विशिष्ट होता है। और प्रोटीन संश्लेषण के लिए अमीनो अम्ल को कोशिका द्रव्य
से राइबोसोम में ले
जाता है। अतः एक कोशिका में tRNA या ट्रांसफर RNA को घुलनशील (Soluble RNA) या Adaptor RNA भी कहा जाता है। एक कोशिका में कुल RNA का 16-18% भाग t-RNA होता है।
रोबर्ट हॉली ने tRNA की क्लोवर लीफ (Clover Leaf) संरचना प्रस्तुत की जिस के अनुसार tRNA में चार भुजाएँ होती है –
ग्राही भुजा (Acceptor Arm) –
इस भुजा से 5’ तथा 3’ सिरे होते है। 3’ सिरे पर CCA (साइटोसिन-साइटोसिन एडेनिन) क्षार होते हैं तथा 5’ सिरे पर G(ग्वानिन) होता है।।
अमीनो अम्ल का कार्बोक्सिल समूह (-COOH) है। 3’ सिरे पर CCA के एडेनोसिन के द्वारा जुड़ता है।
प्रतिकोडॉन भुजा (Anticodon Arm) –
यह भुजा ग्राही भुजा के विपरीत भुजा होती है। इस पर तीन क्षार का एक विशेष
अनुक्रम होता है। जिसे प्रतिकोडॉन कहते है। ये प्रतिकोडॉन mRNA पर स्थित कोडॉन के पुरक होते है। जैसे यदि mRNA पर AUG कोडॉन होते है तो tRNA UAG कोडॉन होंगे।
TψC भुजा (TψC Arm) –
यह भुजा tRNA को राइबोसोम से
जोड़ने में सहायता करती है।
DHU भुजा (DHU Arm) –
यह भुजा एंजाइम से जुड़ने में सहायता करती है। यह DHU का पूरा नाम डाइहाइड्रोयूरिडीन है, जो एक असामान्य क्षार है।
tRNA में कुछ असामान्य
क्षार होते हैं जैसे इनोसिन (Inosine) व
डाइहाइड्रोयूरिडीन (Dihydrouridine) आदि।
3. rRNA या राइबोसोमल RNA (Ribosomal RNA): –
rRNA राइबोसोम का एक घटक
है। यह Ribosome का 80% भाग बनता है। राइबोसोम राइबोन्यूक्लियो प्रोटीन तथा rRNA से मिलकर बना होता है।। rRNA का संश्लेषण
क्रोमोसोम के न्यूक्लिओलर आर्गनाइजर क्षेत्र में पायी जाने वाली राइबोसोमल जीनों
में निहित सूचना से होता है।। एक कोशिका में पाये जाने वाले कुल RNA का 80% भाग rRNA होता है।
प्रोकेरियोटिक कोशिका, माइटोकांड्रिया, तथा लवक में 70s प्रकार का ribosome पाया जाता है। जो दो उप-इकाइयों 50s तथा 30s से मिलकर बना होता
है।
50s राइबोसोम में 23s rRNA, 5s rRNA होता है। जबकि 30s राइबोसोम में 16s rRNA होता है।
23s rRNA में लगभग 3000 राईबोन्यूक्लियोटाइड, 5s rRNA में लगभग 120 राईबोन्यूक्लियोटाइड 16s rRNA 1500 राईबोन्यूक्लियोटाइड
पाये जाते है।
युकेरियोटिक कोशिका में 80s प्रकार का ribosome पाया जाता है। जो दो उप-इकाइयों 60s तथा 40s से मिलकर बना होता
है।
60s राइबोसोम में 28s, 5.8s तथा 5s rRNA होता है। जबकि 40s राइबोसोम 18s rRNA होता है। 28s rRNA में 5000 राईबोन्यूक्लियोटाइड, 5.8s rRNA में 160 राईबोन्यूक्लियोटाइड, 5s rRNA में 120 राईबोन्यूक्लियो टाइड पाये जाते है।
जबकि 18s rRNA में 1800 राईबोन्यूक्लियोटाइड होते है।
rRNA संरचनात्मक अणु (Structural Molecule) है। जबकि tRNA तथा rRNA क्रियात्मक अणु (Functional Molecule) है।
राइबोसोम की इकाइयों व इनमें पाये जाने वाले rRNA को स्वेदवर्ग इकाई (Swedberg Unit) (S) द्वारा प्रदर्शित
किया जाता है। यह इन अणुओं की अवसादन दरों (Sedimentation
Rate) को प्रदर्शित करते है।
अन्य प्रकार के RNA –
snRNA – Small Nuclear
RNA
scRNA – Small
Cytoplasmic RNA
Ribozyme – RNA एंजाइम की भांति कार्य करता है।
miRNA – MicroRNA
piRNA –
Piwi-interacting RNA
snoRNA – Small Nucleolar
RNA
hnRNA – Hetero Nuclear
RNA
rishabhhcp@gmail.com
नोट- यहा मानव शरीर के सभी प्रकार के हारमोंस
की जानकारी देने की कोशिश की है यहा स्पेलिंग त्रुटी होती सकती है कृपया और अधिक
जानकारी के लिए अपने अध्यापक से सहायता ले !
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