जीवाणु , वायरस ,प्रोटोजोआ जनित रोग लक्षण & बचाव रोकथाम-:
रोग का नाम – टायफाइड
रोग जनक-साल्मोनेला टाइफी
प्रसारण/संचरण-दुर्षित भाोजन एवं पानी द्वारा
प्रभावित अंग-आँत
लक्षण:- प्रारंभिक – लगातार बुखार, सिरदर्द , कमजोरी , आमाश्य में पीडा , कब्ज,भूख न लगना ,गंभीर स्थिति:- आँत में छेद घाव
एवं मृत्यु ,
जाँच परीक्षण –विडाल टेस्ट ,रोचक मत्यस ,मेरी मेलाॅन , रसोईया ने कई लोगों को टाइफाइड से संक्रमित किया इसलिए इसे टाइफाइड मेरी नाम
दिया गया।
बचाव रोकथाम –व्यक्तिगत एवं
सामुदायिक स्वच्छता ,सडे-गले फल एवं
सब्जीयों का प्रयोग न करना, बाँसी एवं खुले में
रखे खाद्य पादार्थो का सेवन न करना ,जलाशयों तालाबों एवं पीने के पानी के स्थानों की सफाई। ,अपशिष्ट पदार्थो का समुचित निपटान।
न्यूमेनिया:-
रोगजनक – 1- हीमोफिलस
इफंमूल्ंजी
2- स्ट्रेप्टोकोकस
न्यूमोनी
प्रसरण – संक्रमित व्यक्ति के टेरोसाॅल के द्वारा।
प्रभावित अंग – फेफड़ो के वायु
कोश
लक्षण:-प्रारंभिक
स्थिति – फेफडों के वायुकोशो में तरल भरना, श्वास लेने में कठिनाई,धडकन बढना,सिरदर्द, बुखार,थकावट
गंभीर स्थिति – हाथ की अंगुलियों
के नाखूनो एवं होठों का रंग घुसर ळतंल से नीला हो
जाता है।
रोकथाम – संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क से बचना चाहिए।
वायरस जनित रोग:-
जीवाणु- रोग का नाम – जुकाम
रोग जनक – राइनोवाइरस
प्रसारण – संक्रमित
व्यक्ति के छींकने व खासने के द्वारा बिन्दुओं के प्रसारण से
संक्रमित व्यक्ति द्वारा स्पर्श की गई किताब, पेन्सिल,की-बोर्ड, माउस, बर्तनों दरवाजो के
हैण्डल आदि के छूने से।
लक्षण –नासिका
अस्त्राव, नासिक संकुलता,खाँसी,सिरदर्द,स्वर
रूखस्तंता, कंठघास, छींक आना।
रोकथाम उपाय –
न्यूमोनिया के समान
प्रोटोजोआ जनित रोग –
रोग का नाम – मलेरिया
रोगजनक – प्लाजमोडियम
वाइवैक्स
प्लाजमोडियम मलेरियाई
प्लाज्मोडियम फालंसीफेरम (घातक)
रोग वाहक – मादा-ए
नरफिलीज मच्छर
प्रारंभिक स्थिति –
1- ठिठूरन सर्दी के
साथ बुखार
2- प्रायः दोपहर या
मध्यरात्री में बुखार आना
3- पसीने के साथ बुखर
का उतरना
4- खाँसी एवं सिरदर्द
5- कब्ज होना
6- थकावट या कमजोरी
7- पेशियो एवं जोडों में दर्द
गंभीर स्थिति – 1-त्ठब् नष्ट होना।
2-अखमता ( खून की
कमी)
3.- यकृत का बढना
4- मृत्यु
प्लाजमोडियम रोगजनक का जीवन चक्र , कृमि जनित , कवक जनित रोग-
रोकथाम के उपाय:-
1- अपने घरों के आसपास
पानी एकत्रित नहीं होना चाहिए
2- जहाँ पर पानी
एकत्रित होता हो वहाँ कीटनाशी जैसे क्क्ज् का छिडकाव किया जाना चाहिए।
3- जलभराव वाले
स्थानों पर गंबूसिया मछली छोडी जानी चाहिए।
4- खिडकियाँ पर जाली
लगानी चाहिए।
5- सोते समय मच्छरदानी
का प्रयोग किया जाना चाहिए।
6- मच्छरनाशक क्रीम का
प्रयोग किया जाना चाहिए।
7- कूलर का पानी समय
पर बदलते रहना चाहिए।
रोग का नाम – अमीबीय
क्षतिसार/पेचिश/अमीबियसिस
रोगजनक – एण्टअमीबा हिस्टोलिटिका
प्रसारण – दूषित भोजन एवं जल द्वारा
रोगवाहक – घरेलू मक्खी
लक्षण – उदरीय पीडा एवं ऐंठन,श्लेष्मा एवं रक्त के
धक्के युक्त मल,ज्वर,अरक्तता,कमजोरी
रोकथाम के उपाय -टायफाइड की तरह
कृमि जनित – एलकेरिेसिता
संचरण – बिना खुली सब्जियों एवं प्रयोग से । ये कृमि मृदा
में अण्डे देता है। तथा फल सब्जियों के साथ इसके अण्डे शरीर में प्रवेश कर सकते
है।
लक्षण -आँत्तीय अवरोध
रोग का नाम -फाइलेरिया, फाइलेरिएसिस/एलेफेशियासित,हाथी पाँव/हस्तीपाद/वलीपाद
रोगजनक – वुचरैरिया बैंक क्टाई
कुचरैरिया मैलाई
संचरण – संदुषित भोजन एवं जल द्वारा
रोगवाहक – मच्छर एडीज
लक्षण – 1- लसिका वाहिनियों
में सूजन
2- पैर सूजकर हाथी के
पंाव के समान हो जाते है।
3- रोग के अधिक बढने
पर जनानाँग भी प्रभावित होते है तथा अनेक विरूपता आ जाती है
रोकथाम के उपाय - टाइफाइड व मलेरिया के समान
कवक जनित रोग:-
रोग का नाम-दाद, खाज, खुजली
रोगजनक – माइक्रोस्पोरम एपिडमोफाइटोन
ट्राइकोफाइंटाॅन आदि कवक के वंश
संचरण – संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आने से तथा उसके तौलियाँ एवं रूमाल, कंघे का प्रयोग करने से
लक्षण – शिरोवल्क हाथ और पैर की अंगुलिया के बीच एवं त्वचा के वलनों के मध्य सूखी, शल्की विक्षतिया बनना तथा खुजली
आना।
रोकथाम – 1- व्यक्तिगत स्वच्छता
2- दूसरे व्यक्ति का
तौलिया, कंधे आदि का प्रयोग
नहीं करना चाहिए।
प्रतिरक्षा परिभाषा क्या है , immunity के प्रकार अर्जित सक्रिय निष्क्रिय प्रतिरक्षा टीकाकरण
प्रतिरक्षा परिभाषा क्या है , immunity के प्रकार अर्जित सक्रिय निष्क्रिय प्रतिरक्षा टीकाकरण-
प्रतिरक्षा (immunity) – हमारे शरीर में
रोगजनकों से लडने की शक्ति होती है। जिसे
प्रतिरक्षा कहते है। यह हमें प्रतिरक्षा तंत्र के द्वारा प्राप्त होती है।
प्रतिरक्षा के
प्रकार:-
सहज प्रतिरक्षा/प्राकृतिक आनुवाँशिक या जन्मजाति प्रतिरक्षा;प्ददंजम पउउनदपजलद्ध रू- प्रत्येक व्यक्ति में जन्म से ही पायी जानी वाली
प्रतिरक्षा को सहज प्रतिरक्षा कहते है। ये विभिन्न प्रकार के अवरोध (वैरियर)
उत्पन्न करके हमारे शरीर की रोगाणुओं से रक्षा करते है। सहज प्रतिरक्षा चार प्रकार
की होती है।
शारीरिक रोध:- ये रोगाणुओं के
शरीर में प्रवेश को रोकते है।
उदाहरण- त्वचा एवं जनन तथा पाचन तंत्र को आस्तरित करने वाली श्लेष्मा
कार्यकीय अवरोध:- ये शरीर में
रोगाणुओं की वृद्धि को रोकते है ।
उदाहरण- मुंह में लार, आँख में आँसू, आमाश्य में अम्ल आदि।
कोशिकीय अवरोध:- ये रोगाणुओं का भक्षण करके उन्हें नष्ट कर देती हैं।
उदाहरणः WBC- जैसे-लिम्फीसाइट
साइसोकाइन अवरोध:-
शरीर में वायरस का संक्रमण होने पर विशेषप्रकारके प्रतिरक्षी बनते है जिन्हे
इन्टरफेरान कहते है जो भविष्य में विषाणु के संक्रमण एवं अन्य को शिकाओं को विषाणु
संक्रमण से बचाते है।
अर्जित प्रतिरक्षा (acquired
immunity)-
जब हमारा शरीर प्रथम बार रोगजनकों का सामना करता है तो कम शक्ति की
अनुक्रियाहोती है जिसे प्रथम अनुक्रिया कहते है। जब रोग जनकों से दूसरी बार सामना
होता है तो उच्च तीव्रता की अनुक्रिया होती है जिसे द्वितीय अनुक्रिया कहते है।
प्रथम अनुक्रिया एवं द्वितीयक अनुक्रिया को सम्मिलित रूप से अर्जित प्रतिरक्षा
कहते है। स्मृति उसका एक अभिलक्षण है यह प्रथम मुठभेड की स्मृति पर आधारित होती है
तथा रोगजनक विशिष्ट होती है।
प्रथम अनुक्रिया , द्वितीयक अनुक्रिया
अर्जित प्रतिरक्षा
निम्न तीव्रता उच्च तीव्रता प्रथम मुठभेड की स्मृति पर आधारित
अर्जित प्रतिरक्षा के दो कारक:-
1.B-कोशिका:- ये रोग जनकों का सामना करने वाले विशेष प्रकार के प्रोटीन की सेवा
तैयार करते है जिन्हें प्रति रक्षी कहते है।
2.T-cells:- ये प्रतिरक्षी निर्माण नहीं करती है किन्तु प्रतिरक्षा बनाने में ठ. कोशिकाओं
की मदद करती है। ठ. कोशिका और ज्. कोशिका लिम्फोसाइट होती है।
प्रतिरक्षी अणु की सरंचना एवं प्रकार:-
प्रतिरक्षी अणु पोलीपेप्टाइड का बना होता है जिसमें दो दीर्घ श्रृंखला एवं दो
लघु श्रृंखला होती है जो आपस में डाइसल्फाइड बंधके द्वारा जुडी होती है इन्हें H2L2 भी कहते है।
प्रकार- मुख्य पाँच प्रकार के होते है।
1.IgD, 2.IgA, 3.IgM, 4.IgE, 5.IgG
अर्जित प्रतिरक्षा के प्रकार-
1- तरल मध्यित अर्जित
प्रतिरक्षा HIR -यह B- कोशिकाओं द्वारा प्रदान की जाती है। तथा इसकी स्मृति कम होती है अतः यह
प्रतिरक्षा कम अवधि की होती है इसके प्रतिरक्षी रक्त में पाए जाते है।
2- कोशिका माध्यित
अर्जित प्रतिरक्षा-
यह ज् कोशिकाओं कें द्वारा प्रदान की जाती है। इसकी अवधि अधिक होती है हय अंग
प्रत्यारोपण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
सक्रिय निष्क्रिय
प्रतिरक्षा:-
जब रोगजनकों से सामना करने हेतु मृत या कमजोर रोगाणु या प्रोटीन प्रवेश करवाई
जाती है तो शरीर में बने वाले प्रतिरक्षा सक्रिय प्रतिरक्षी कहलाते है।
जब शरीर में टीकों के द्वारा बने बनाये प्रतिरक्षी प्रवेश करवाये जाते है तो
उन्हें निष्क्रिय प्रतिरक्षा कहते है।
उदाहरण:- साँप के काटने पर लगाया जाने वाला इंजेक्शन, टिटनेस का टीका।
प्रतिरक्षी
टीकाकरण:-
इंजेक्शनके द्वारा शरीर के द्वारा शरीर में प्रतिरक्षी प्रवेश करवाने की
क्रिया को टीकारकण कहते है इसके द्वारा अर्जित प्रतिरक्षा प्रापत होती है। हमारा
प्रतिरक्षी तंत्र रोगजनकों से हमारी सुरक्षा करता है।
स्व-प्रतिरक्षा:-
उच्च कशेरूकी जीवों में अर्जित प्रतिरक्षा तंत्र स्व पर में भेद करने मे
ंसमक्षम हाता है। ये विजातीय तत्वों को प्रतिरक्षी के द्वारा नष्ट कर देते है
किन्तु कभी-2 आनुवांशिक एवं
अज्ञात कारणों से प्रतिरक्षी कोशिकाओं स्वयं की कोशिकाों को नष्ट कर देती है इसे
स्व-प्रतिरक्षा कहते है तथा इस प्रकार होने वाले रोगों को स्व-प्रतिरक्षा की रोग
कहते है।
उदाहरण:- आमावती संधिशोध र्यूमेटाइड आर्याइटिस।
अंग प्रत्यारोपण में प्रतिरक्षी तंत्र की भूमिका/महत्व:-
नेत्र, वृक्क, यकृत, हृदय आदि अंगों के
खराब होने पर अंग प्रत्यारोपण की एकमात्र उपाय है प्रतिरक्षी तंत्र स्व एवं पर में
भेद करने मे ंसक्षम होता है। अंग प्रत्यारोपण में दाता एवं ग्राही की जिनीय संरचना
एवं उतरक एवं रक्त समूह समान होने चाहिए। उतक मिलान एवं रक्त मिलानके बावजूद
प्रतिरक्षा तंत्र सक्रिय हो जाता है एवं प्रत्यारोपित अंग का विरोध करता है अत
प्रतिरक्षी संदमक का प्रयोग किया जाता है। इसके कारण प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर हो
जाता है। एवं रोगाणु आसानी से शरीर में प्रवेश कर जाते है।
एलर्जी क्या है , लक्षण , कारण , निदान , उपचार- एलर्जी:-
वातावरण में उपस्थिति कुछ विशेष प्रतिजनों के प्रति प्रतिरक्षा- तंत्र द्वारा
उत्पन्न तीव्र अनुक्रिया को एलर्जी कहते है।
एलर्जन:-एलर्जी उत्पन्न करने वाले कारकों को एलर्जन कहते है। उदाहरण- धूल, धूप, धुंआ, पराग, चिचडी, प्राणी लघु शल्क आदिं
लक्षण:- लगातार छींक, खासी आना, नाक बहना,आँखों में आंसू आना,आँखों अनीला होना पीला और नीला होना।,त्वचा पर
दाने उबरना,खुजली होना,साँस लेने में तकलीफ।
प्रतिरक्षी का प्रकार – IgE
एलर्जी का कारण:-मास्ट कोशिकाओं
द्वारा हिस्टेमिन एवं सिरोटोनिन जैसे रसायनों के स्त्राव के कारण/प्रतिरक्षा तंत्र
के कमजोर होने से प्रतिष्द्वान के प्रति संवेदनशीलता बढी है इसके साथ-2 हमारी जीवन शैली एवं अत्याधिक रक्षित वातावरण में रहने के कारण एलर्जी होती
है।
निदान:-संभावित एलर्जनों की कुछ मात्रा टीकों के द्वाराशरीर में प्रवेश करवायी जाती
है। तथा प्रक्रिया का अध्ययनकिया जाता है।
उपचार:-बचाव ही उपचार है। लेकिन एण्टीहिस्टैमिन, एड्रेनलिन, इस्टीराॅक औषधियाँ
के द्वारा एलर्जी के लक्षणों को कम किया जा सकता है।
प्रतिरक्षी तंत्र क्या है , परिभाषा , प्रकार -
प्रतिरक्षी तंत्र में घुलनशील अणु कोशिका उतक एवं लसिकाय अंग शामिल किये जाते
है। पाचन जनन एवं श्वसन पथ की श्लेषमा से संबंधित लसिका ऊतक लगभग 50 प्रतिशत होता है जिसे श्लेष्मा सम्बंद्ध लिसिकाय ऊतक MALT कहते है।
लसिकाभ अंग:-
वे अंग जहाँ लसिकाणुओं की उत्पत्ति परिपक्वन, प्रचुरोद भवन की क्रिया होती है उन्हें लसिका अंग कहते है जो निम्न है:-
।. प्राथमिक लसिकाय अंग:-वे अंग जहाँ लसिका
अणु उत्पन्न होते है एवं प्रतिजन संवेदनशील बनते है उन्हें प्रति प्राथमिक लसिकाय
अंग कहते है जो निम्न है:-
1-अस्तिमज्जा:- यह मुख्य लसिकाय
अंग है जहाँ लसिका अणुओं सहित सभी प्रकार की रूधिर कोशिकाओं का निर्माण होता है।
2-थाइमस:- यह एक प्राणियुक्त
ग्रन्थि होती है जो बचपन में पूर्ण विकसित होती है एवं धीरे- छोटी होती जाती है
युवावस्था मे ंयह एक तंतुमय डोरी के समान होती है।
II -द्वितीयक लसिकाय
अंग:-
वे अंग जहाँ कोशिकाएं प्रतिजनों से क्रिया करके प्रचुर संख्या में बनती है
उनहें द्वितीयक लसिकाय अंग कहते है। यह रक्त में उपस्थित विजातीय पदार्थो को
पहचाँनक प्रतिरक्षी उत्पन्न करता है तथा उन्हें नष्ट करता है।
लसिका ग्रन्थियाँ:-
ये ठोस सरंचनाएं होती है जो लसिका में उपस्थित रोगाणुओं को नष्ट करती है।
III. टांसिल – गले में स्थित होते है।
IV – पेयर्स p:- ये आँत्तीय उपकला
में स्थित होते है तथा भोजन में उपस्थित रोगाणुओं को नष्ट करते है।
V. परिशोशिका अपेन्डिक्स :- आहार नाल से
संबंधित
एड्स AIDS
इसका पहला रोग 1981 में पाया गया तथा
अब तक लगभग 2.5 करोड से अधिक
व्यक्तियों को इस रोग से मृत्यु हो चुकी है।
रोगजनक- विषाणु
जनित (HIV) Human immunodeficiency virus
यह एक पश्च विषाणु टपतने है इसमें RNA जीनोम पर एक आवरण पाया जाता है।
रोग का संचरण/प्रसारण/कारण:-
1 संक्रमित व्यक्ति
के यौन सम्पर्क द्वारा
2 संदुषित रूधिरएवं
रूधिर उत्पादों के आधान द्वारा
3 संक्रमित सूई के
प्रयोग द्वारा
4 संक्रमित माँ से
शिशु को।
भ्रान्तियाँ:-1.हाथ मिलाने गले लगने, साथ रहने, साथ भोजन करने आदि से एडस नहीं होता है।
लक्षण:-
इसके लक्षण कुछ महीनों से लेकर कुछ वर्षो 5-10 वर्ष में उत्पन्न होते है।
1 लगातार बुखार।
2 दस्त लगन
3 वजन में कमी
4 अवसरवादी संक्रमण:- इसमें अनेक विषाणु, जीवाणु
जैसे:-माइक्रोबेकटेरियम कवक एवं टेक्सोप्लेजमा जैसे
परजीवियों का संक्रमण हो जाता है।
टेस्ट + निदान – ELISA Enzyme-linked immune sorbent assay एन्जाइम सहलग्न
प्रतिरक्षारोधी आमपन
रोकथाम/उपचार:-
1 बचाव ही एकमात्र
उपचार है अत कहा जाता है अज्ञानता के कारण मत मो।
2 एण्टीट्रोवाइरल
औषधियों के प्रयोग द्वारा इसके लक्षणों को कम किया जा सकता है।
रोकथाम:- National AIDS Control
Organization (NACO)
इसके लिए निम्न प्रयास कर रहे है।
1 सुरक्षित यौन
सम्पर्क को बढावा देना
2 कण्डोम का निःशुल्क
वितरण
3 रक्त बैकों को
भ्प्ट युक्त बनाना।
4 डिस्पोजेबल सीरीज
को बढावा
5 ड्रग के कुप्रयोग
पर नियंत्रण।
6 सुग्राही समष्टि की
नियमित जाँच।
कैंसर (Cancer), कारण , लक्षण , निदान , उपचार-
संजीवो में कोशिका विभेदन एवं वृद्धि एक नियमित एवं नियंत्रित प्ररिकीय है जब
ये नियामक क्रियाएं भँग हो जाती है तो उसे केसर कहते है।
सामान्य कोशिकाओं मे संस्पर्श संदमन का गुण पाया जाता है किन्तु कोशिकाओं के
अनियंत्रित्ंा एवं अनियमित विभाजित होने का कारण इस गुण का समाप्त होना है। इस
प्रकार शरीर में गाँठ, टयूमर अर्नुद बन
जाता है ये दो प्रकार के होते है।
1 सुदम (benign):- ये स्थानिक होती है
तथा शरीर में अन्य स्थानों पर नहीं फैलती है अतः यह अधिक हानिकारक नहीं है।
2 दुर्दम (Malignant):- इस प्रकार बना कैसर
का टयूमर अपी कोशिकाओं को शरीर के अन्य भागों में भी स्थापना कर देता है। तथा यही कैंसर की भयानक स्थिति है।
कैंसर कोशिकाओं में फैलने का गुण मेटास्टेसिस कहलाता है।
कारण:- प्रसामान्य
कोशिकाओं में प्रोटोओन्कोजीन ब्. ओकोजीन पाये जाते है ये नवदूब्बी कोशिकाओं में
ओंकोजीन में बदल जाते है। नवदूी कोशिकाएं सामान्य कोशिकाओं से स्पर्दा करती है तथा
सामान्य कोशिकाएं भूखी मर जाती है।
कैंसर उत्पन करने वाले कारक तीन प्रकार के होते है जिन्हें कैसरजन कार्सिनोजन
कहते है।
1- भौतिक कारक:-
X किरणें, पराबैंगनी किरणें, ताप आदि।
2- रासायनिक कारक:-
धुंआ, गुटखा आदि में
उपस्थित रासायनिक पदार्थ तथा हार्मोन, ओषधियाँ, प्रदूषक आदि।
3-जैविक कारक:- ओंकोवायरस प्रोटोओन्कोजीन कैंसरजन
ओकोजीन -ओकोजीन नवद्रव्यी कोशिका
लक्षण:-
1 शरीर के तील या
मस्से के आकार में परिवर्तन।
2 घाव का न भरना।
3 गाँठ बनना।
4 घाव व गाँठ में
लगातार दर्द।
5 वजन में कमी।
6 बुखार।
7 मुंह में छाला।
8 शरीर के प्राकृतिक
छिद्रोें से रक्त स्त्राव
निदान-
1 रक्त परीक्षण
2 रेडियोग्राफी
एक्सरे
3 हिस्टोफेथोलाॅजीकल परीक्षण
4 रेडियोग्राफी
ग्.त्ंल
5 हिस्टोफेंथोलाॅजीकल
परीक्षण
6 ब्ज्. स्केन
अभ्सिकलित टोमोग्राफी
7 डत्प् चुम्बकीय
अनुवाद चित्रण
8 जीवूति परीक्षण
बायोप्सी
9 आण्विक जैविकी
तकनीको द्वारा।
उपचार:-
प्रतिवर्ष भारत में लगभग 10 लाख लोग कैंसर
द्वारा कर जाते है अतः प्रारंभिक अवस्था में इसका निदान एवं उपचार आवश्यक है:-
1 शल्य क्रिया
2 विकिरण
चिकित्सा/रेडियोथेरेपि जैसे ब्न्.60
3 रसायन चिकित्सा
किमोथैरेपी:- इनके दुष्प्रभाव होते है जैसे बालों का झडना,
केसर के उपचार हेतु तीनो तरीकों का प्रयोग किया जा सकता है।
4- जैविक क्रिया
रूपान्तरण:-
कैंसर प्रतिजन प्रतिरक्षी पहचाने जाने एवं नष्ट किये जाने से बचते है अतः
विशेष प्रकार के प्रतिरक्षी बनाये जाते है जिन्हें जैविक अनुक्रिया रूपान्तरण कहते है।
उदाहरण:- Y. इन्टरफेराॅन
ड्रग और एल्कोहाॅल का कुप्रयोग , युवावस्था एवं किशोरावस्था
अनेक पादप एवं उनके भाग औषधि महत्व के होते है जब इनका प्रयोग चिकित्सा के
अतिरिक्त अन्य किसी उद्वेश्य से बार-बार और अधिक मात्रा में किया जाये तो ये शरीर
की विभिन्न क्रियाओं पर विपरित प्रभाव डालते है इसे ही ड्रग/एलकोहाॅल का कुप्रयोग
कहते है।
इस प्रकार के पादपों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है।
I. ओपियोइडस:- वे पदार्थ को केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के ओपियोइड ग्राही द्वारा ग्रहण किये
जाते है उन्हें ओपियोइउस कहते है।
उदाहरण अफीम/पोस्ट ओपियम वन नाम-पेपावर सोमनीफेरम
अफीम पादप के कच्चे फलो के द्वाराप्राप्त की जाती है इसके लेटेकरा क्षीर के
निष्कर्षण से मार्मिम प्राप्त होती है तथा मार्फिन के ऐसिटिलीकरण के द्वारा सिरोडन, स्मेक बनाये जाते है ये सफेद तीखा, स्बोदार यौगिक होता है जिसे सूंघकर अथवा टीको के रूप में प्रयोग किया जाता है।
II. केनेविनाइडस:-
वे पदार्थ जो केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के केनेविनाइड ग्राही द्वारा ग्रहण
किये जाते है उन्हें केनेबिनाइडस कहते है।
उदाहरण:- भाँग केनेबिस
सैटाइवा:-
उपयोगी अंग पुष्पक्रम भाँग के पादप के पुष्पशीर्ष, पत्तियों एवं रेजिन के अलग-2 अनुपात मिलाने से
निम्न पदार्थ बनाये जाते है मेरिजुमाना, चरस, गाँजा, हसीश।
उपयोग:-अन्त श्वसन या मुंह द्वारा प्रभावित अंग-रूद-वाहिका
तंत्र
III. कोका ऐल्कालयड:-
यह कोकेन (कोक) के नाम से उपलब्ध होता है। वनस्पति नाम एरिप्रोजाइलम कोका स्
दक्षिण अमेरिका का मूल पादप।
प्रभाव:- विभ्रम (केैलुसिनेशन) उत्पन्न करता है सूखा यूफोरिया
होता है के कारण शरीर में उर्जा की वृति आभास होता है।
अन्य उदाहरण:-1म. ट्रोपा बेलाडोना
2 धतुरा
अन्य औषधियाँ:-
जिनका कुप्रयोग होता है। बार्बिटयूरेट, बेंजोडायजोपिन, एंफेटिमिन, लाइसार्जिक एसिड डाइ ऐमाइड ;स्ैक्द्ध
टप्प्. धु्रमपान व इसके प्रभाव:-
सेवन का तरीका
1 चबाना
2 धुमपान के रूप में
3 सूंघना।
मुख्य एल्कोहाॅल-निकोटिन
दुष्प्रभाव:-1. मुंह गले एवं फेफडों का कैसर
2 .श्वसनी शोध, 3 .मुत्राश्य एवं
वृक्क का कैसर
4. हदय रोग, 5. दमा, 7. खून की कमी
युवावस्था एवं
किशोरावस्था व ड्रग व एल्कोहल का दुष्प्रभाव:- 12
-18 वर्ष
प्रयोग का कारण्:-
1 .प्राकृतिक
जिज्ञासा
2 .प्रयोग करने की
इच्छा।
3 .उत्तेजना के प्रति
आकर्षण
5 .प्रभाव को फायदे
के रूप में देखना
6. समस्या के समाधान का तरीका
7 .शैक्षिक क्षेत्र
में दबाव का सामना करने हेतु।
8 .पारिवारिक
सम्बन्धों में तनाव
9 .निर्भरता या लत
लगना
तात्कालिक प्रभाव:- श्वसन पात, हदृय पात, वृक्क निष्क्रिय
होना मस्तिष्क प्रघात, मूर्छा एंव मृत्यु
दूरगामी परिणाम:-चोरी करना, मित्रों एवं पारिवारिक सदस्यों को हानि, आर्थिक कष्ट, मानसिक वेदना तथा
एडस यकृत शोध-बी लीवर सिओसि, तंत्रिकीय क्षति
आदि।
लक्षण:- स्कूल कॉलेजों से
बिना कारण अनुपस्थिति।,शैक्षिक प्रदर्शन में कमी, एकाँकीपन, थकावट, अवसाद तनाव ,आक्रमाक
व्यवहार, बिगडे सम्बन्ध,व्यक्तिगत स्वच्छता में की, शौक में कमी, खाने की आदतों में परिवर्तन, सोने की आदत में परिवर्तन, वजन का घटना या बढना
खिलाडीयों द्वारा ड्रग का कुप्रयोग विनिवर्तन संलक्षण withdrawal syndrome:-
ड्रग एल्कोहाॅल के एक बार के प्रयोग से भी इसी लत तग जाती है तथा शरीर की
ग्रहण करने की सीमा बढ जाती है तथा एक समय ऐसा आता है जब व्यक्ति उस लत पर निर्भर
हो जाता है तथा चाहने पर भी छोड नहीं पाता है।
ड्रग के कुप्रयोग के अचानक बंद करने पर उत्पन्न होने वाले लक्षणों को
विनिवर्तन संलक्षण कहते है।
जैसे:- चिंता, कपकपी, मिचली, पसीना आना, ऐंठन एवं भयंकर दर्द तथा कभी-2 मृत्यु भी हो जाती है।
खिलाडीयों द्वारा
ड्रग का कुप्रयोग:-
पदार्थ:।. स्वापक पीडाहर
II. उपापचयी narcotic andgestc
III मूत्तल दवा
IV. कुष्ठ हार्मोन
कारण:-आक्रात्मकता बढाने हेतु,माँसपेशियों शक्तिशाली बनने के लिए
दुष्प्रभाव:- पुरूष
व महिला खिलाडी में:-
आक्रामकता बढना,सख्त मुहाँसे, भाव दशा में उतार चढाव, लम्बी अस्थियों के सिरे बंध होने से वृद्धि अवरूद्ध हो जाती है।, वृक्क एवं यकृत की
दुष्क्रियता:-
महिला खिलाडी:- स्तनों का विकास कम होना,पुरूषत्व का विकास,भगसैफ की वृद्धि, आवाज का तीखा होना, आवाज का गहरा होना,
मुंह व शरीर पर बालों की अत्यधिक वृद्धि
पुरूष खिलाडी:-वृषणों का आकार बढना, शुक्राणु उत्पादन में कमी,नपुंसकता, प्रोस्टेट ग्रन्थि का बढना।, समय से पूर्व बालों का गिरना।
रोकथाम व
नियंत्रण:-समकक्षी दबाव से बचाव,माता-पिता गुरूजनों एवं अन्य
निकट संबंधियों का सहयोग,संकट के संकेतों को देखना (लक्षणों की पहचान),शिक्षा और
परामर्श,चिकित्सकीय एवं व्यापारिक परामर्श (सहायता )
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नोट- यहा विस्तृत जानकारी देने की कोशिश की है यहा
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