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कोशिका ( Cell )


                    कोशिका ( Cell )
कोशिका ( Cell ) जीवन की रचनात्मक , कार्यात्मक और मूलभूत इकाई हैं |
सर्वप्रथम कोशिका की खोज Robert hook ने कोर्क में की जो एक म्रत कोशिका थी |
ल्यूवेन हॉक ने सर्वप्रथम जीवित कोशिका की खोज की |
कोशिका विज्ञान ( Cytology) के जनक Robert hook को कहा जाता हैं |

जीवो की जैविक क्रियाओं की रचना करने वाली तथा उनका संचालन करने वाली मौलिक इकाई को कोशिका कहते हैं|

कोशिका में स्वजनन पाया जाता हैं | R. virchow ने बताया कि नयी कोशिका का निर्माण पुरानी कोशिका से विभाजन द्वारा होता हैं | तंत्रिका कोशिका (Nerve cell ) मनुष्य की सबसे बड़ी कोशिका जबकि सबसे छोटी कोशिका माइकोप्लाज्मा ( PPLO ) हैं | सबसे भारी और बड़ी कोशिका शुतुर्मुर्ग चिड़िया का अंडा हैं |







कोशिका के प्रकार –
कोशिका दो प्रकार की होती हैं |
प्रोकैरियोटिक कोशिका
यूकैरियोटिक कोशिका

प्रोकैरियोटिक कोशिका तथा यूकैरियोटिक कोशिका को खोज Dougherty Allen ने की थी |
प्रोकैरियोटिक कोशिका व  यूकैरियोटिक कोशिका के बीच की कड़ी को मीजोकैरियोटिक कोशिका कहते हैं |मीजोकैरियोटिक कोशिका की खोज Doudge ने की थी |

उदाहरण – डायनोफ्लैजिलेट |

1. प्रोकैरियोटिक कोशिका –
प्रोकैरियोटिक कोशिका में केन्द्रक झिल्ली , केन्द्रक सुविकसित कोशिकांग अनुपस्थित होते हैं | प्रोकैरियोटिक कोशिका की कोशिका भित्ति पेप्टाइडोग्लायकेन या म्युरेन की बनी होती हैं | प्रोकैरियोटिक कोशिका में 70 ‘s’ प्रकार के राइबोसोम पाए जाते हैं | कोशिका द्रव्य के सीधे सम्पर्क में DNA तथा RNA रहते हैं | इनके गुणसूत्र में हिस्टोन प्रोटीन का अभाव होता हैं |

उदाहरण – जीवाणु ( Bacteria ) , साइनोबैक्टीरिया अर्कीबैक्टीरिया , विषाणु ( Virus ) , बैक्टीरियोफेज , माइकोप्लाज्मा ( PPLO ) , नील हरित शैवाल ( Blue green algae ) रिकेट्सिया की कोशिकाएं आदि |

2. यूकैरियोटिक कोशिका –
यूकैरियोटिक कोशिका में कोशिका भित्ति ( cell wall ) सेल्युलोस तथा पेक्टोज की बनी होती हैं |
यूकैरियोटिक कोशिका में कोशिका झिल्ली (cell membrane ) , केन्द्रक तथा पूरी तरह से विकसित कोशिकांग उपस्थित होते हैं| यूकैरियोटिक कोशिका में 80′ s ‘ प्रकार के राइबोसोम पाए जाते हैं | इनमे DNA तथा RNA कोशिका द्रव्य के सीधे सम्पर्क में नहीं रहते हैं | यूकैरियोटिक कोशिकाओ के गुणसूत्र(chromosome) में हिस्टोन प्रोटीन पायी जाती हैं | जो क्षारीय होती हैं |
उदाहरण – सभी जन्तु कोशिका , प्रोटोजोआ , जीव जन्तु आदि

कोशिका की संरचना


कोशिका की बनाबट अत्यधिक जटिल होती हैं | कोशिकाओं में अनेक प्रकार की संरचनाये पायी जाती हैं , जिन्हें कोशिकांग कहते हैं |

कोशिका के भाग –
कोशिका में प्रमुख रूप से तीन भाग पाए जाते हैं –
1. कोशिका भित्ति ( cell wall )
2. जीवद्रव्य ( protoplasm )
3. रसधानियां या रिक्तिकाएं ( Vacuole )

1. कोशिका भित्ति ( Cell wall ) –
पादप कोशिकाओ की सबसे बाहरी कठोर , मजबूत , मोटी तथा छिद्रयुक्त , पारगम्य तथा निर्जीव आवरण को कोशिका भित्ति कहते हैं|

Robert hooke ने कोशिका भित्ति ( Cell wall ) की खोज की थी |
कोशिका भित्ति का निर्माण कोशिका विभाजन ( Cell division ) की अंत्यावस्था ( Telophase ) के समय अंतः प्रद्रव्यी जालिका ( Endoplasmic reticulum ) की छोटी – छोटी नलिकाओं के माध्यम से होता हैं | कोशिका भित्ति पादपों में उपस्थित तथा जन्तुओ में अनुपस्थित होती हैं | पादपो में कोशिका भित्ति सेल्यूलोस तथा पेक्टोस की बनी होती हैं |सामान्यतः बहुत से कवको ( Fungi ) तथा यीस्ट में कोशिका भित्ति काईटिन के द्वारा बनती हैं | तथा शैवालो ( Algae ) में कोशिका भित्ति का निर्माण गैलक्टेन मैंनन ,कैल्सियम कार्बोनेट से बना होता हैं | द्वितीयक कोशिका भित्ति सेल्युलोज पेक्टिन तथा लिग्निन आदि पदार्थो की बनती हैं | त्तृतीयक कोशिका भित्ति का निर्माण जाईलन नामक पदार्थ द्वारा होता हैं | कोशिका भित्ति की सबसे बाहरी प्राथमिक कोशिका भित्ति पतली , कोमल , लोचदार तथा पारगम्य होती हैं | मध्य पटल ( Middle lamella ) का निर्माण कैल्सियम तथा मैग्नीसियम के पेक्टेट्स द्वारा होता हैं |

प्लाज्मा मेम्ब्रेन –
प्लाज्मा मेम्ब्रेन कोशिका के कोशिका द्रव्य और जीवद्रव्य की सबसे बाहरी परत होती हैं | यह कोशिका में प्रवेश करने वाले तथा बाहर निकलने वाले विभिन्न अणुओं तथा आयनों पर नियंत्रण तथा कोशिका द्रव्य में आयनों की सांद्रता को बनाये रखती हैं | प्लाज्मा मेम्ब्रेन जंतु कोशिकाओं में पायी जाने वाली सबसे बाहरी परत तथा पादप कोशिकाओं में पायी जाने वाली दूसरी परत हैं |

प्लाज्मा मेम्ब्रेन के अन्य नामप्लाज्मा झिल्ली , जीव कला / कोशिका झिल्ली  ( cell membrane ) , बायोलोजिकल मेम्ब्रेन , प्लाज्मा लेमा , प्लाज्मा जैल , सारकोलेमा , न्यूरोलेमा आदि |

कोशिका झिल्ली लिपिड व प्रोटीन की बनी होने के कारण इसे लाइपोप्रोटीन झिल्ली भी कहते हैं , कुछ कोशिकाओं की कोशिका झिल्ली में कम मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स भी होते हैं |

2.जीवद्रव्य ( Protoplasm ) –
जीवद्रव्य सभी सजीव कोशिकाओं में पाया जाता हैं | इसमें पाये जाने वाले समस्त पदार्थ को जीवद्रव्य कहते हैं |

जीवद्रव्य (Protoplasm ) नाम सर्वप्रथम पुरकिन्जे ( 1840) तथा एच. बी. मोहल ( 1846 ) ने दिया था |

जीव में सम्पन्न होने वाली सभी जैविक क्रियाएं जीवद्रव्य में सम्पन्न होती हैं | इसलिए जीवद्रव्य को जीवन का भौतिक आधार ( Physical basis of life ) कहा जाता हैं | जीवद्रव्य का Ph = 6.5 – 7.0 होती हैं | जीवद्रव्य में वृध्दि तथा विभाजन पाए जाते हैं | नया जीवद्रव्य पुराने जीवद्रव्य के अंदर बनता हैं |

जीवद्रव्य के गुण
जीवद्रव्य ( protoplasm ) के निम्न गुण हैं |
1. भौतिक गुण – जीवद्रव्य रंगहीन , अर्धपारदर्शक तथा अर्धतरल पदार्थ हैं | जीवद्रव्य में 60 – 70% जल पाया जाता हैं | जिसमे अकार्बनिक तथा कार्बनिक पदार्थ मिले रहते हैं | जीवद्रव्य में विभिन्न पदार्थ अणु व आयन के रूप में मिले रहते हैं इनके मिश्रण को क्रिस्टलीय घोल कहते हैं | जीवद्रव्य में ब्राउनी गति पायी जाती हैं |

2. रासायनिक गुण – जीवद्रव्य के जटिल मिश्रण में लगभग 30 तत्व जिनमे मुख्य रूप से ऑक्सीजन , कार्बन हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन क्रमशः 62% , 20% , 10% ,8% के अनुपात में होते हैं तथा शेष सोडियम , पोटेशियम , कैल्सियम , लोहा तथा सल्फेट इत्यादि पदार्थ सूक्ष्म मात्रा में होते हैं |

3.रसधानियाँ या रिक्तिकाएं ( Vacuole ) –
रिक्तिकाएं पादप कोशिकाओं में पायी जाती हैं | कोशिका द्रव्य में गोल , खोखले तथा झिल्ली द्वारा घिरे स्थान को रिक्तिका या रसधानी कहते हैं

Dujardin ( 1841 ) ने रिक्तिका नाम दिया |
संकुचनशीलधानी ( Contractile vacuoles ) की खोज Spallanzani ( 1776 ) ने प्रोटोज़ोआ में की थी |

रिक्तिकाएं पादप कोशिकाओं में पायी जाती तथा जन्तुं कोशिका में अपेक्षाकृत कम पायी जाती हैं | रिक्तिका का निर्माण आंतरद्रव्यजालिका ( Smooth endoplasmic reticulum – SER ) से होता हैं | रिक्तिका एक नॉनसाइटोप्लाज्मिक सैक हैं | पुष्प व फलों के रंग रिक्तिकाओं में एन्थोसाइनिन पाए जाने के कारण होता हैं |

रिक्तिकाओं के प्रकार
रिक्तिकाएं चार प्रकार की होती हैं |
1. रसधानी ( Sap vacuoles )
2. संकुचनशीलधानी ( Contractile vacuoles )
3. पाचन धानी ( Food vacuole )
4.  गैस धानी ( Gas and air vacuoles / pseudovacuoles )

रिक्तिका के कार्य
1. रिक्तिका कोशिका के कोशिका द्रव्य में पाए जाने वाले कोलॉइडी मैट्रिक्स को यांत्रिक बल प्रदान करती हैं |
2. रिक्तिका परासरण नियमन (Osmo regulation ) में मद्त करती हैं | अकोशकीय जीवों में |
3. रिक्तिका प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में भाग लेती हैं जैसे – CAM ( क्रेस्यूलियन ऐसिडमेटा बोलिज्म ) पौधे |
4. रिक्तिका उच्च श्रेणी के पौधों में स्फीती दाब ( Turgor pressor ) को नियंत्रित करती तथा कोशिका को स्फीत ( Turgid ) बनाये रखती हैं |

केन्द्रक ( Nucleus )
कोशिका के जीवद्रव्य का वह मुख्य भाग जो आकार में गोल ,अण्डाकार , घने गहरे रंग की रचना हैं , जिसे केन्द्रक कहते हैं | केन्द्रक ( Nucleus ) की खोज 1831 में रॉबर्ट ब्राउन ने की |

कोशिका में केन्द्रक की संख्या एक होती हैं | केन्द्रक ( शुष्क भार पर आधारित ) में प्रोटीन , फोस्फोलिपिड्स , DNA तथा RNA क्रमशः 70% , 3-5% , 10% , 2-3% पाए जाते हैं |

केन्द्रक मुख्य रूप से चार भागों का बना होता हैं |
केन्द्रक कला ( Nuclear membrane )
केन्द्रक द्रव्य (Nucleoplasm / nuclear sap)
केन्द्रिका ( Nucleolus )
क्रोमेटिन धागे (Chromatin threads / chromatin fiber)

केन्द्रक के कार्य-
  • केन्द्रक को कोशिका का नियंत्रक कहते हैं क्योकि केन्द्रक कोशिका की समस्त जैविक क्रियाओं का नियंत्रण करता हैं |
  • केन्द्रक आनुवांशिकता में भाग लेते है क्योकि केन्द्रक में गुणसूत्र पाए जाते हैं |
  • केन्द्रक राइबोसोम का निर्माण करते हैं |
  • केन्द्रक कोशिका विभाजन ( Cell division ) के समय गुणसूत्र की रक्षा करते हैं |
  • लाइसोसोम या लयनकाय  ( Lysosomes )

लाइसोसोम-
लाइसोसोम कोशिका द्रव्य की अत्यंत सूक्ष्म एवं एकल झिल्ली से घिरी हुयी वेसिकुलर जीवित संरचना हैं , जो कोशिका में पाचन की क्रिया का संचालन करती हैं |
लाइसोसोम की खोज C. de. duve ने चूहे की लिवर कोशिका में की |लाइसोसोम को नाम Novikoff ( 1956 ) ने दिया था |
लाइसोसोम ज्यादातर जंतु कोशिकाओं में एंजाइम निर्माण करने वाली कोशिकाओं जैसे – अग्नाशय , यकृत , मस्तिष्क, थायरॉइड तथा गुर्दे आदि में पाए जाते हैं | लाइसोसोम में प्रोटिएज , राइबोन्युक्लिएज , डिओक्सीराइबोन्युक्लिएज , फ़ोसफेटेज आदि एन्जाइम पाए जाते हैं , इन सभी को अम्लीय अपघट्य कहते हैं

लाइसोसोम के अन्य नाम –
आत्मघाती थैली ( Suicidal bag ) , डिस्पोजल इकाई , परमाणु बम , डिमोलिशन स्कवैड , कोशिका के सफाई कर्मचारी ( Scavanger of cell ) , पुन चक्रीयकरण केंद्र ( Recycling center ), Cellular house keepers

लाइसोसोम चार प्रकार के होते हैं
प्राथमिक लाइसोसोम ( Protolysosomes , storage granules )
द्वितीयक लाइसोसोम ( Secondary )
अवशिष्ट काय ( Residual bodies )
ऑटोफैगिक रिक्तिकाएं ( Autophagic vacuoles )

लाइसोसोम के कार्य-
  • लाइसोसोम कोशिका विभाजन ( Cell division ) को आरंभ करते हैं |
  • लाइसोसोम अस्थियों का निर्माण करते हैं |
  • जन्तुओं में लाइसोसोम अण्डों में शुक्राणु के प्रवेश में सहायता प्रदान करके निषेचन की क्रिया में योगदान देते हैं |
  • बीजों में लाइसोसोम अंकुरण की क्रिया को प्रेरित करते हैं |

कोशिका द्रव्य ( Cytoplasm )-
कोशिका द्रव्य ( Cytoplasm ) की खोज 1831 में रॉबर्ट ब्राउन ने की तथा 1874 में वास्तविक नाम कोशिका द्रव्य प्राप्त किया |
कोशिका द्रव्य प्लाज्मा मेम्ब्रेन तथा केन्द्रक कला के बीच के स्थान में भरा होता हैं तथा कोशिका द्रव्य निम्न यौगिकों से मिलकर बना होता हैं – कार्बोहाइड्रेट , प्रोटीन , लिपिड , जल एवं कुछ अकार्बनिक पदार्थ |

कोशिका द्रव्य के निम्न तीन भाग होते हैं
एक्टोप्लास्ट
टोनोप्लास्ट
मीजोप्लास्ट

अन्तः प्रद्रव्यी जाालिका ( Endoplasmic reticulum )-
यूकैरियोटिक कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में थैली युक्त छोटी नलिकावत जालिका तन्त्र में बिखरा हुआ , आपस मे जुड़ा एवं चपटा रहता हैं जिसे अन्तः प्रद्रव्यी जालिका कहते हैं |अन्तः प्रद्रव्यी जालिका ( Endoplasmic reticulum ) की खोज k. R. Porter  ने की थी |

अन्तः प्रद्रव्यी जालिका ( Endoplasmic reticulum ) केन्द्रक कला से कोशिका कला तक फैली रहती हैं तथा केन्द्रक कला से अन्तः प्रद्रव्यी जालिका का निर्माण होता हैं |अन्तः प्रद्रव्यी जालिका कोशिका द्रव्य  तथा केन्द्रक द्रव्य के बीच सम्बन्ध स्थापित करता हैं | अन्तः प्रद्रव्यी जालिका विभाजन करने वाली कोशिकाओं में ज्यादा अल्पविकसित होती हैं जबकि लिवर सेल , पेन्क्रिआज में अधिक विकसित होती हैं |
अन्तः प्रद्रव्यी जालिका आकृति के आधार पर तीन प्रकार की होती हैं-
सिस्टर्नी
थैलियाँ ( Vesicles )
नलिकाएँ ( Tubules )

अन्तः प्रद्रव्यी जालिका राइबोसोम के आधार पर दो प्रकार की होती हैं
सपाट अन्तः प्रद्रव्यी जालिका ( Smooth Endoplasmic reticulum ) – SER
कणिकामय अन्तः प्रद्रव्यी जालिका ( Granular / Rough Endoplasmic reticulum ) – GER या RER

अन्तः प्रद्रव्यी जालिका के कार्य-
अन्तः प्रद्रव्यी जालिका को  अन्तः कंकाल भी कहते हैं क्योंकि अन्तः प्रद्रव्यी जालिका कोशिका के अंदर यांत्रिक शक्ति प्रदान करता हैं |
कणिकामय अन्तः प्रद्रव्यी जालिका ( RER / GER ) प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया में भाग लेते हैं |
अन्तः प्रद्रव्यी जालिका पदार्थों के प्रवेश करने तथा बाहर निकलने की क्रिया पर नियंत्रण रखता हैं |
अन्तः प्रद्रव्यी जालिका केन्द्रक आवरण का निर्माण करता हैं |
सपात अन्तः प्रद्रव्यी जालिका ( SER ) ग्लाइकोजन का निर्माण व संग्रह करता हैं |

गॉल्जीकाय ( Golgi body )-
जीवित कोशिकाओं में थैलिनुमा संरचनाएं जो समूहों में पायी जाती हैं तथा अन्तः प्रद्रव्यी जालिका ( Endoplasmic reticulum ) से चिपकी ( संलग्न ) होती हैं जिनमें द्रव भरा होता हैं ,गॉल्जी काय ( Golgi body ) कहलाती हैं |
सर्वप्रथम ( 1898 ) कैमिलो गॉल्जी ने गॉल्जी काय की खोज की कैमिलो गॉल्जी के नाम के आधार पर इसे गॉल्जी काय ( Golgi body ) नाम दिया |

गॉल्जी काय ( Golgi body ) सभी जीवधारियों की कोशिकाओं में पाये जाते हैं जबकि नीले -हरे शैवालों , जीवाणुओं एवं माइकोप्लाज्मा में नहीं पाये जाते | गॉल्जी काय ( Golgi body ) को पादपों में डिक्टियोसोम भी कहते हैं | डिक्टियोसोम की संख्या 9 से 10 होती हैं |
गॉल्जी काय के अन्य नाम -गॉल्जी कॉम्प्लेक्स , गॉल्जी उपकरण , लाइपोकोन्ड्रिया , गॉल्जीओसोम , गॉल्जी मैटेरियल , गॉल्जी मेम्ब्रेन |

गॉल्जी काय के कार्य-
  • गॉल्जी काय प्रमुख रूप से विभिन्न पदार्थों (  मुख्यतः एन्जाइम्स ) का स्त्रावण करता हैं |
  • गॉल्जी काय कोशिका पट्टिका का निर्माण कोशिका विभाजन के समय अन्तः प्रद्रव्यी जालिका  से मिलकर करता हैं |
  • जंतुओं में गॉल्जी काय एक्रोसोम का निर्माण करता हैं |
  • हेमिसेल्युलोज व पेक्टिन का संश्लेषण गॉल्जी काय द्वाराा किया जाता हैं |

गॉल्जी काय चार संरचनाओं से मिलकर बनी होती हैं
सेक्युलस / सिस्टर्नी
ट्यूबल्स
वेसीकल्स
वैक्यूल्स

    राइबोसोम-
कोशिका में मेम्ब्रेन रहित गोलाकार या डमरू  के आकार की सबसे छोटी व कोशिका द्रव्य में सबसे  अधिक संख्या में पायी जाने वाली जीवित रचना को राइबोसोम कहते हैं |

राइबोसोम की खोज ( 1955 ) में पैलाडे ( Palade )  ने जंतु कोशिकाओं में की थी| पैलाडे ने राइबोसोम नाम दिया | पादप कोशिकाओं में रोबिन्सन तथा ब्रॉउन ने 1953 में राइबोसोम की खोज की|

राइबोसोम राइबोन्यूक्लिक अम्ल तथा प्रोटीन के सूक्ष्म कण हैं , इसलिए इसे राइबोन्यूक्लियो प्रोटीन कण ( RNP -particle ) भी कहते हैं | राइबोसोम के सूक्ष्म कणों का व्यास 140 – 160 एंगस्ट्रोम होता हैं | राइबोसोम अन्तः प्रद्रव्यी जालिका ( Endoplasmic reticulum ) से जुड़े होते हैं , तथा माइटोकॉन्ड्रिया , हरित लवक एवं केन्द्रक में भी उपस्थित होते हैं |
राइबोसोम दो प्रकार के होते हैं

1.70 ‘S’ राइबोसोम- 70 ‘S’ राइबोसोम माइटोकॉन्ड्रिया , क्लोरोप्लास्ट , बैक्टीरिया में पायी जाने वाली एवं सूक्ष्म आकार वाली कण हैं |

 2. 80 ‘S’ राइबोसोम- 80 ‘S’ राइबोसोम उच्च विकसित पौधौं एवं जन्तु कोशिकाओं में पाये जाते हैं , तथा आकार में बड़े होते हैं |

राइबोसोम के कार्य-
  • राइबोसोम अमीनों अम्ल से प्रोटीन संश्लेषण करने में सहायक होते हैं |अतः इन्हें कोशिका का की प्रोटीन फैक्ट्री कहा जाता हैं |
  • राइबोसोम प्रोटीन संश्लेषण के समय प्लेटफॉर्म या टेम्पलेट का कार्य करते हैं |
  • राइबोसोम प्रोटीन निर्माण के समय m -RNA के अणु को संरक्षित रखता हैं |

तारक काय ( Centrosome )-
तारक काय ( Centrosome ) गोलाकार , छोटे , अनियमित आकार के छड़ नुमा तथा एन्जाइम्स युक्त कण होते हैं जो संख्या में एक होते हैं , जो केन्द्रक के पास बाहरी सतह पर , मध्य में होते हैं |
तारक काय ( Centrosome ) की खोज बेन्डन ने की तथा विब्रोबरी ने इसका नाम तारक काय ( Centrosome ) दिया |
तारक काय ( Centrosome ) में दो छोटी रचनाएँ पायी जाती हैं जिन्हें सेंट्रीओल्स ( Centrioles )  कहते हैं |

तारक काय के कार्य-
  • कोशिका विभाजन के समय तारक काय ( Centrosome )  स्पिन्डिल फाइबर बनाते हैं |
  • तारक काय ( Centrosome ) पक्षमों एवं कशाभिकाओं का निर्माण करते हैं |
  • तारक काय ( Centrosome ) शुक्राणुओं के अक्षीय तंतु का निर्माण करते हैं |

माइटोकॉन्ड्रिया-
यूकैरियोटिक कोशिका के कोशिका द्रव्य में अनेक छोटे , गोलाकार , मुग्दाकार ( Club shaped ) , तंतुमय ( Filamentous ) , कणिकामय एवं छड़ के आकार की रचनाएं पाई जाती हैं , जिन्हें माइटोकोंड्रिया कहते हैं |
माइटोकोंड्रिया की खोज कोलिकर ने की तथा माइटोकोंड्रिया नाम बेन्डा ( 1897 ) ने दिया |
माइटोकोंड्रिया की लम्बाई 1.5μ – 4μ तक तथा व्यास 0.5 से 1.0μ तक होता हैं |
माइटोकोंड्रिया दोहरी झिल्ली से घिरी जीवित रचना होती हैं , माइटोकोंड्रिया में ऑक्सीश्वशन की क्रिया सम्पन्न होती हैं | माइटोकोंड्रिया जन्तुओ तथा पौधों की सभी जीवित कोशिकाओं में पायी जाने वाली रचनाएँ हैं , जो नीली – हरी शैवालों तथा बैक्टीरिया की कोशिकाओं में नहीं पायी जाती हैं | माइटोकोंड्रिया की क्रिस्टी की सतह व आंतरिक झिल्ली पर बहुत से छोटे ( सूक्ष्म ) कण पाए जाते हैं , जिन्हें  कण या ऑक्सीसोम्स कहते हैं कण को इलेक्ट्रोन अभिगमन कण भी कहते हैं |

माइटोकोंड्रिया के कार्य-
  • माइटोकोंड्रिया में सभी खाद्य पदार्थों का ऑक्सीकरण होता हैं इसलिए माइटोकोंड्रिया को कोशिका का पावर हाउस भी कहते हैं |
  • अंडजनन के दौरान माइटोकोंड्रिया द्वारा पीतक पट्टलिकाओं ( Yolk platelets ) का निर्माण किया जाता हैं |
  • माइटोकोंड्रियल वलय का निर्माण माइटोकोंड्रिया द्वारा शुक्राणुजनन के समय होता हैं |
  • माइटोकोंड्रिया के द्वारा उत्पन्न ऊर्जा ATP ( एडिनोसीन ट्राईफास्फेट ) के रूप में होती हैं तथा इसका निर्माण अकार्बनिक फास्फेट तथा एडिनोसीन डाईफास्फेट ( ADP ) के मिलने से होता हैं |
  • माइटोकोंड्रिया में ऊर्जा निर्माण के साथ – साथ ऑक्सीकरण की क्रिया के द्वारा Co2  एवं जल का निर्माण होता हैं | माइटोकोंड्रिया के क्रिस्टी में इलेक्ट्रोन अभिगमन तंत्र की क्रिया सम्पन्न होती हैं |

लाइसोसोम / लयनकाय (Lysosome) -
खोज : लाइसोसोम की खोज डी डूवे नमक वैज्ञानिक ने की थी 
 कोशिका में पुट्टीका (थैली) के रूप में उपस्थित होती है |
यह इकाई झिल्ली से परिबद्ध कोशिकांग है , इसमें सभी प्रकार के जल अपघटनीय एंजाइम जैसे – हाइड्रोलेजेज , प्रोटोसेज , लाइपेसेज , कार्बोहाइड्रेजेज मिलते है जो अम्लीय माध्यम में सर्वाधिक सक्रीय होते है | ये कार्बोहाइड्रेट , प्रोटीन , लिपिड व न्यूक्लिक अम्ल के पाचन में सक्षम होते है , ये एंजाइम लाइसोसोम से बाहर आने पर कोशिका का ही पाचन कर सकते है इसलिए इसे कोशिका की आत्मघाती थैली भी कहते है |
कार्य-
  • ये कोशिका के अन्दर किसी भी बाह्य पदार्थ जैसे – जीवाणु आदि को नष्ट कर देते है |
  • ये पुरानी व मृत कोशिकाओ को नष्ट करने में सहायक होता है |

लवक ( Plastids )-
लवक ( Plastids ) गोलाकार , चपटे आकार , रंगीन अथवा रंगहीन एवं पादप कोशिकाओं में पायी जाने वाली , बड़े आकार की केन्द्रक से छोटी रचना हैं

हरे रंग के लवक को हरितलवक , रंगहीन प्लास्टिड को ल्यूकोप्लास्ट तथा रंगीन प्लास्टिड को क्रोमोप्लास्ट कहते हैं | ल्यूकोप्लास्ट दो मेम्ब्रेन युक्त सेमीओटोनोमस कोशिकांग हैं |
हैकेल (Haeckel ) ने 1865 में लवक ( Plastids ) की खोज की | ए. एफ. डब्ल्यू. एस. शिम्पर (A. F. W. S. schimper )  ने सर्वप्रथम लवक ( Plastids ) शब्द का प्रयोग किया |

लवक ( Plastids ) कवक , जीवाणुओं , नीले-हरे शैवालों , मिक्सोमाइसीट्स आदि में नहीं पाए जाते हैं जबकि नग्न , द्विचक्रीय DNA , 70 ‘s’ राइबोसोम तथा लैमिला सभी लवकों में पाए जाते हैं 

लवक ( Plastids ) के तीन भाग होते हैं -
1. हरित लवक (Chloroplast)
हरितलवक (Chloroplast) द्वारा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा भोजन का निर्माण होता हैं | हरितलवक(Chloroplast) में क्लोरोफिल ‘A’ तथा क्लोरोफिल ‘B’ क्रमशः 75% , 25% पाए जाते हैं |

2. वर्णीलवक ( Chromoplast )
वर्णीलवक पौधों के रंगीन भागों जैसे पुष्पों के दलों तथा रंगीन फलों की भित्तियों में पाए जाते हैं |

3. अवर्णीलवक ( Lyukoplast )
अवर्णीलवक रंगहीन तथा भूरे रंग के भागों जैसे – जड़ , जमीन के अंदर के भाग , तने के आंतरिक भाग में पाए जाते हैं |

अवर्णीलवक (Lyucoplast ) कार्य के आधार पर तीन प्रकार के होते हैं –
एमाइलोप्लास्ट – शर्करा का स्टार्च में संचय |
इलायोप्लास्ट – वसा का संचय |
प्रोटीनोप्लास्ट – प्रोटीन का संचय |

लवक के कार्य-
  • हरितलवक के ग्रेना में प्रकाशीय अभिक्रिया द्वारा ATP , NADPH बनाये जाते हैं तथा ऑक्सीजन मुक्त होती हैं|
  • हरितलवक के स्ट्रोमा में अप्रकाशीय अभिक्रिया द्वारा शर्करा का निर्माण होता हैं |
  • अवर्णीलवकों द्वारा भोज्य पदार्थों का संचय किया जाता हैं |लवक के कार्य

कोशिका विभाजन- 

पुरानी कोशिकाओं से विभाजन द्वारा नयी कोशिका के निर्माण की क्रिया कोशिका विभाजन कहलाती हैं |
जंतु कोशिकाओं में कोशिका विभाजन की खोज  Flemming ने की |

कोशिका चक्र ( Cell cycle )-
कोशिका के निर्माण से लेकर , कोशिकाओं के विभाजन द्वारा नयी कोशिकाएं बनने की सारी प्रक्रिया को कोशिका चक्र कहते हैं |
हावर्ड और पेल्फ़ ने कोशिका चक्र को 4 अवस्थाओं में दर्शाया हैं 
https://lh4.googleusercontent.com/ub7_aYCTS5YzNc_UMstVLB_wdrYp8aaGqlhddyPDvhP7qsg6yQPSxKSGnCGLbwZe-2cUiHGsfYNe07VXxiBPf7JTYzTW2MFjC_q3h7QsBQYZngeMaMsLDN3VuZ5-CBcIbXcsnXs4

1.G1अवस्था
G1अवस्था में RNA तथा प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया होती हैं |
2. S अवस्था
S अवस्था में DNA संश्लेषण की क्रिया होती हैं |
3. अवस्था
 अवस्था में विभाजन की तैयारी होती हैं |
4. M अवस्था
M अवस्था में विभाजन होता हैं , जिसे चार चरणों में व्यक्त करते हैं –
प्रोफेज
मेटाफेज
टीलोफेज
साइटोकाइनेसिस
अंतरावस्था ( Interphase )

अंतरावस्था के अंतर्गत , S ,  अवस्थाएं आती हैं , अंतरावस्था दो विभाजनों के मध्य की अवस्था हैं | अंतरावस्था में कोशिका उपापचयी क्रियाओं द्वारा विभाजन की तैयारी होती हैं |

माइटोटिक प्रावस्था ( Mitotic phase )-
माइटोटिक प्रावस्था को M-phase भी कहते हैं | माइटोटिक प्रावस्था में केन्द्रक एवं कोशिका द्रव्य का बंटबारा होता हैं | कोशिका विभाजन ( Cytokinesis ) तथा केन्द्रक विभाजन ( Karyokinesis ) कहते हैं | DNA का द्विगुणन कोशिका विभाजन से पहले तथा बाद में केन्द्रक तथा कोशिका द्रव्य का विभाजन होता हैं |

कोशिका विभाजन प्रमुख रूप से तीन प्रकार का होता हैं |
असूत्री विभाजन
सूत्री विभाजन
अर्ध्द सूत्री  विभाजन

1. असूत्री विभाजन ( Amitosis / Amitotic )
असूत्री विभाजन की खोज रेमक ने की | असूत्री विभाजन द्वारा जनक कोशिका का केन्द्रक दो भागों में बँट जाता हैं तथा इसके बाद कोशिका द्रव्य में संकुचन के दौरान कोशिका द्रव्य दो भागो में बँट जाता हैं |इस प्रकार दो संतति कोशिकाओं का निर्माण हो जाता हैं | यह विभाजन प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं जैसे – जीवाणु , नीली हरी शैवालों , यीस्ट , अमीबा , प्रोटोजोआ में होता हैं |

2. सूत्री या समसूत्री विभाजन ( Mitosis )
सूत्री विभाजन की खोज डब्ल्यू फ्लेमिंग ने की | स्टार्सबर्गर ने सूत्री विभाजन का सर्वप्रथम पादप कोशिकाओं में अध्ययन किया | कोशिका विभाजन की वह प्रक्रिया जिसमे एक बार विभाजन से एक समान प्रकार की दो नयी कोशिकाओं का निर्माण होता हैं , लेकिन इस प्रक्रिया के द्वारा उत्पन्न हुयी नई कोशिकाओं में क्रोमोसोम की संख्या व उनका प्रकार अपनी जनक कोशिकाओं के समान होता हैं | सूत्री विभाजन कायिक या दैहिक कोशिकाओं ( Somatic cells ) में पाया जाता है सूत्री विभाजन के दो मुख्य भाग होते हैं |
  • केन्द्रक का विभाजन ( Karyokinesis )
  • कोशिका द्रव्य का विभाजन (Cytokinesis )

केन्द्रक का विभाजन दो भागों में बँटा होता हैं
  • अंतरावस्था ( Interphase )
  • विभाजन प्रावस्था ( Mitotic phase )

3. अर्ध्दसूत्री विभाजन ( Meiosis )
अर्ध्दसूत्री विभाजन की खोज सर्वप्रथम 1905 में फार्मर एवं मूरे ने की |
कोशिका विभाजन की वह प्रक्रिया जिसमें एक बार विभाजन से चार नयी अगुणित कोशिकाओं का निर्माण होता हैं | लेकिन निर्मित हुई नयी कोशिकाओं में क्रोमोसोम की संख्या अपनी जनक कोशिका की तुलना में आधी होती हैं अत: इस विभाजन द्वारा कोशिका व जीवों में क्रोमोसोम की संख्या आधी रह जाती हैं | अर्ध्दसूत्री विभाजन सदैव द्विगुणित कोशिकाओं ( Diploid cells ) में पाया जाता हैं | अर्ध्दसूत्री विभाजन में कोशिका द्रव्य तथा केन्द्रक का दो बार विभाजन होता हैं , इन दो विभाजनों में से प्रथम विभाजन – अर्ध्दसूत्री विभाजन प्रथम ( Reduction division / Meiosis first ) तथा द्वितीय विभाजन अर्ध्दसूत्री विभाजन द्वितीय ( Meiosis Second ) होते हैं | अर्ध्दसूत्री विभाजन के आख़िरी में चार अगुणित ( Haploid ) कोशिकाओं का निर्माण होता हैं | अर्ध्दसूत्री विभाजन लैंगिक जनन करने वाले जीवों में पाया जाता हैं| अर्ध्दसूत्री विभाजन परागकणों ( Anthers ) , बीजाण्ड ( Ovules ) या बीजाणुधानी ( Sporangia ) तथा जंतुओं के वृषण ( Testis ) एवं अण्डाशय ( Ovary ) में पाया जाता हैं | अर्ध्दसूत्री विभाजन में सूत्री विभाजन के समान , S ,   उपअवस्थाएं पायी जाती हैं |

अर्ध्दसूत्री विभाजन दो भागों में बंटती हैं |
  • अर्ध्दसूत्री विभाजन प्रथम
  • अर्ध्दसूत्री विभाजन द्वितीय

1.अर्ध्दसूत्री विभाजन प्रथम-
अर्ध्दसूत्री विभाजन प्रथम में चार प्रावस्थायें पायी जाती हैं –
1. प्रोफेज प्रथम 
प्रोफेज अत्यंत जटिल लम्बी प्रावस्था हैं , प्रोफेज को निम्न पाँच अधोलिखित अवस्थाओं में विभक्त किया गया हैं
लेप्टोटीन – इसमें विभाजन की तैयारे की जाती हैं |
जाइगोटीन – समजात गुणसूत्र जोड़े |
पेंचीटीन – क्रोसिंग ओवर होना |
डिप्लोटीन – डिप्लोटीन में क्याजमेटा पर अर्ध्दगुणसूत्र टुकड़ो का आदान – प्रदान होता हैं | ( टेट्रावैलेन्ट स्थिती में )
डाईकाइनेसिस – केन्द्रक कला एवं केंद्रिका नष्ट हो जाती एवं क्रोमोसोम दूर हट जाते हैं |

2. मेटाफेज प्रथम -
मेटाफेज में क्रोमोसोम और छोटे हो जाते एवं लम्बाई में फट कर डायड ( Dyad ) का रूप ले लेते हैं , जिसमें दोनों क्रोमेटिड सेन्ट्रोमीयर पर जुड़े होते हैं तथा केंद्रिका अद्रश्य हो जाती हैं |

3. एनाफेज प्रथम  
इसमें गुणसूत्र विपरीत ध्रुवों की ओर जाते हैं |

4. टीलोफेज प्रथम
टीलोफेज प्रथम में केन्द्रक कला एवं केंद्रिका स्पष्ट हो जाती तथा गुणसूत्र ध्रुवों पर एकत्रित हो जाते हैं |

2. अर्ध्दसूत्री विभाजन द्वितीय
अर्ध्दसूत्री विभाजन द्वितीय की प्रक्रिया सूत्री विभाजन के समान होती तथा अर्ध्दसूत्री विभाजन के पूरे होने पर चार अगुणित ( Haploid – x ) नई कोशिकाएं निर्मित होती हैं | निषेचन ( Fertilization ) की क्रिया के समय नर एवं मादा युग्मक के संयोजन से गुणसूत्र की संख्या भ्रूण ( Zygote ) में पुन: द्विगुणित (Diploid -2x ) हो जाती हैं |

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नोट- यहा मानव शरीर के सभी प्रकार के हारमोंस की जानकारी देने की कोशिश की है यहा स्पेलिंग त्रुटी होती सकती है कृपया और अधिक जानकारी के लिए अपने अध्यापक से सहायता ले !


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